इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज क्यों रखा गया

सबसे पहले तो आप ये जान ले की ये योगी सरकार के शासन में ही सिर्फ नाम नहीं बदले गए है, बल्कि इससे पहले भी में अलग अलग जगहों के नाम बदले गए है. सिर्फ फर्क इतना रहा है ।

कि योगी सरकार ने इतिहास और संस्कृति के आधार पर जगहों का नाम करण किया और दूसरी पार्टियों ने द्वेष और बदले को भावना के आधार पर जगहों का नामकरण किया है उदाहरण स्वरूप उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार ने उन आठ जिलों के नाम फिर से बदल दिए थे जिनका नया नामकरण मायावती ने कुछ ही साल पहले किया था. जैसे हापुड़ का पंचशील नगर या अमेठी का छत्रपति शाहूजी महाराज नगर.

नाम बदलने की इस प्रथा पर उचित राय बनाने या देने के लिए, हमें सबसे पहले जितनी ज्यादा हो सके इसके बारे में जानने की जरूरत है। सबसे उचित कारण यह है कि इन स्थानों को नए नाम देकर, हम अपने देश से आक्रमणकारियों के प्रभाव को हटा रहे हैं। उदाहरण के लिए, वाल्टेयर अंग्रेजों द्वारा विशाखापत्तनम शहर को दिया गया नाम था, जो शब्द-व्युपत्ति से काफी स्पष्ट था।

नए मामलों में, गुड़गांव को “गुरुग्राम” में बदलते हुए यह कहा गया था कि “गुरुग्राम” प्राचीन नाम था – जिसका नामकरण महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य ने गया था। दावा किया जाता है कि “गुरु-ग्राम” नाम समय के साथ बिखर गया था, जिस वजह से यह गाँव “गुड़गांव” में बदल दिया गया था। इसलिए “गुरुग्राम” के समर्थक कहते हैं कि नामकरण हमारी संस्कृति को संरक्षित करने का एक तरीका है।

इलाहाबाद का नाम बदलने का जो कारण है कि, प्राचीन काल में इसे 1575 तक “प्रयाग” के नाम से जाना जाता था किंतु मुस्लिम आक्रांता अकबर ने बाद में इस शहर को “इलाहाबास” नाम दिया, जिसका साधारणतया अनुवाद है “अल्लाह का निवास स्थान”। वर्षों के, साधारण संशोधनों और बदले गए उच्चारण के साथ, इस जगह को “इलाहाबाद” के रूप में जाना जाने लगा।पुराने नाम मुगलों और मुस्लिम शासकों के शासन की दासता का प्रतीक था।

अब नाम बदलकर सरकार उससे मुक्ति दिलाने का प्रयास कर रही है।हम सब जानते है प्रयाग राज सनातन संस्कृति में कितना महत्व रखता है और अगर सरकार गुलामी कि जंजीर को तोड़कर अपनी संस्कृति को प्रख्यात करना चाहती है तो इसमें गलत क्या है।

“नाम में क्या रखा है?” ऐसा बोल देना आसान है, लेकिन यह समझना होगा कि नाम में ही सबकुछ रखा है।नाम ही किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु को प्रथम पहचान देती है।बीजेपी का जगहों का नाम बदलना बिल्कुल सही है, एक तरह से नाम बदला नहीं जा रहा बल्कि वहीं नाम दे रहे है जिससे हमारी पहचान है।

कुछ आक्रान्ता शासकों ने हमारे संस्कृति और सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहरों के साथ छेड़छाड़ करके अपने विचार के अनुरूप नामकरण कर दिया।अगर बीजेपी इनका नाम बदलकर पुनः हमें हमारे संस्कृति, सभ्यता से हमें जोड़ती है तो ये सराहनीय है।हमें इसका सम्मान करना चाहिए।

इसलिए अपने धरोहर और संस्कृति को विश्व प्रख्यात करना और उसकी पहचान को पुनः स्थापित करने में राजनीतिक फायदा नहीं देखना चाहिए बल्कि इसे अपनी धरोहर मान कर इसका स्वागत करना चाहिए ।

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