कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर और सिस्टम सॉफ्टवेयर का अंतर तय करने के लिए, हमें सॉफ्टवेयर के दो प्रमुख प्रकारों को समझना महत्वपूर्ण है, आइयें कुछ सरल भाषा में समझतें हैं।
Table of Contents
कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer Software)
यह तो सर्वविदित है कि कम्प्यूटर एक मशीन है । किसी भी मशीन का निर्माण किसी विशिष्ट प्रयोजन से होता है और उस मशीन की अपेक्षाओं के अनुसार उससे काम लिया जाता है । लेकिन कम्प्यूटर एक गूँगी मशीन होने के साथ ही साथ बुद्धिमान भी है, हालाँकि मनुष्य के मस्तिष्क का मुकाबला करना किसी के लिए संभव नहीं है लेकिन कम्प्यूटर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) पैदा करने के प्रयास किए जा रहे है। कम्प्यूटर से कोई भी कार्य संपन्न कराने के लिए उसे कम्प्यूटर की भाषा में प्रोग्राम अर्थात क्रमानुदेश दिए जाते हैं, जिनके आधार पर वह प्रयोगकर्ता के द्वारा दिए गए निर्देशानुसार कार्य करता है। कम्प्यूटर वस्तुतः न तो अंग्रेजी समझता है और न ही हिन्दी या अन्य कोई भाषा; इसकी अपनी भाषाएँ हैं और यह द्विआधारी अंकों (binary) अर्थात ‘0’ तथा ‘1’ अंकों पर कार्य करता है। पास्कल (Pascal), कोबॉल(COBOL), सी (C), सी प्लस प्लस (C++), फोरट्रॉन(FORTRAN), सी शार्प (C#), विजुअल बेसिक (Vissual Basic) आदि कम्प्यूटर भाषाएँ हैं और इन भाषाओं के माध्यम से ही कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किए जाते हैं । एक समूची कम्प्यूटर प्रणाली के मुख्यतः तीन अंग होते हैं 1) हार्डवेयर, 2) सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा, 3) अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर ।
कंप्यूटर की मशीन को हार्डवेयर (Hardware) कहा जाता है पर यह मशीन स्वयं कार्य करनें में सक्षम नहीं होती है। कम्प्यूटर मशीन या उसके साथ जुडी सभी इकाइयों/यंत्रों को चलाने के लिए सॉफ्टवेयर(Software) की आवश्यकता होती है। सॉफ्टवेयर कंप्यूटर के हार्डवेयर का उपयोग करने मे मदद करता है। यह एक या एक से अधिक प्रोग्रामों या निर्देशों का एक समूह होता है जिनका प्रयोग कर कंप्यूटर द्वारा कोई कार्य विशेष सम्पादित किया जाता है। दूसरे शब्दों में कंप्यूटर में प्रयोग किए जाने वाले सभी प्रोग्राम, प्रोग्रामिंग भाषाएँ, भाषा अनुवादक और कोई अन्य अनुप्रयोग (Application) सभी को सॉफ्टवेयर के नाम से ही जाना जाता है। अतः एक संपूर्ण कम्प्यूटर सिस्टम वास्तव में हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों के सही सामंजस्य से मिलकर बनता है। कार्य के प्रकार के आधार पर सॉफ्टवेयर के अनेक प्रकार होते है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं-
1. सिस्टम सॉफ्टवेयर ( System Software)
2. अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर (Applications Software)
सिस्टम सॉफ्टवेयर ( System Software)
निर्देशों की एक श्रृंखला जो कम्प्यूटर को कोई निश्चित कार्य पूर्ण करने के लिए दी जाती है, प्रोग्राम कहलाती है। एक या एक से अधिक प्रोग्रामों का वह समूह जो किसी विशेष कार्य करने के लिए लिखा या तैयार किया जाता है उसे सॉफ्टवेयर कहते है।
एक या एक से अधिक प्रोग्रामों का ऐसा समूह जिसका प्रयोग कंप्यूटर सिस्टम को चलाने (ऑपरेट) करने के लिए किया जाता है, उसे सिस्टम सॉफ्टवेयर कहा जाता है। ऐसे सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर सिस्टम के सफल संचालन और उसके नियंत्रण से संबंधित कार्य करते है। इस तरह के सॉफ्टवेयर में प्रमुख रुप से ऑपरेटिंग सिस्टम, डिवाइस ड्राइवर्स, प्रोग्रामिंग भाषाएं, यूटिलिटी प्रोग्राम, लिंकर, डिबगर, सर्वर्स तथा पाठ्य संसाधक आते है।
• ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating Systems) – ऑपरेटिंग सिस्टम सिस्टम सॉफ्टवेयर की श्रेणी का सबसे प्रमुख प्रकार है । यह किसी भी कम्प्यूटर को चलाने के लिये सबसे आवश्यक सॉफ्टवेयर है। ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना कम्प्यूटर का संचालन ही संभव नहीं है। ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसे साफ्टवेयर का समूह है जो कि कम्प्यूटर के हार्डवेयर को प्रयोग में लाने हेतु तैयार करता है तथा कम्प्यूटर के साथ जुड़े अन्य सहयोगी उपकरणों के मध्य एवं कम्प्यूटर मेमोरी में आंकडो एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है।
आपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर के बीच सेतु का कार्य करता है। कम्प्यूटर का अपने आप में कोई अस्तित्व नही है। यह केवल हार्डवेयर जैसे की-बोर्ड, मॉनिटर, सी.पी.यू इत्यादि का समूह है। आपरेटिंग सिस्टम समस्त हार्डवेयर के बीच सम्बंध स्थापित करता है।आपरेटिंग सिस्टम के कारण ही प्रयोगकर्ता को कम्प्यूटर के विभिन्न भागों की जानकारी रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साथ ही प्रयोगकर्ता अपने सभी कार्य तनाव रहित होकर कर सकता है।यह सिस्टम के संसाधनों को बांटता एवं व्यवस्थित करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम कई उपयोगी कार्य जैसे प्रयोक्ता प्रबंधन, मेमोरी प्रबंधन, रिसोर्स प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण कार्यो के साथ फाइल को पुनः नाम देना, डायरेक्टरी की विषय सूची बदलना, डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य करता है।
माइक्रोकम्प्यूटर क्षेत्र में आज जो सबसे प्रचलित ऑपरेटिंग सिस्टम हैं वह माइक्रोसॉफ्ट कंपनी द्वारा बनाये गये हैं। इनमें डॉस (DOS), विंडोज 98, विंडोज एक्स पी, विंडोज- विस्टा प्रमुख हैं । लेकिन इन सभी को कम्प्यूटर के साथ आपको खरीदना पड़ता है। यदि आप मुफ्त का ऑपरेटिंग सिस्टम प्रयोग करना चाहते हैं तो उसके लिये लिनक्स के कई संस्करण तथा स्वरुप उपलब्ध हैं जो पूरी तरह मुफ्त हैं। इनमे से कई विंडोज की तुलना में कई मायने में बेहतर भी हैं लेकिन इनको सीखने में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है। अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम हैं- एनड्राइड, गूगल क्रोम, हायकू, रिएक्टओएस, मार्फओएस, फ्रीमिंट इत्यादि ।
- प्रोग्रामिंग भाषाएं (Programming Languages) – इस प्रकार के सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर पर प्रोग्रामिंग की सुविधा प्रदान करते है। इन सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर आप अपनी आवश्यकतानुसार कम्प्यूटर प्रोग्राम को विकसित कर सकते है। इस श्रेणी के सॉफ्टवेयर में सभी कम्प्यूटर भाषाएं (मशीनी, असेम्बली तथा उच्च स्तरीय भाषाएं), उनके असेम्बलर, कम्पाइलर, इंटरप्रेटर तथा डिबगर आते है।
- डिवाइस ड्राइवर्स (Device Drivers ) – डिवाइस ड्राइवर्स ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर होते है जिनका उपयोग अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर से जुडी किसी हार्डवेयर डिवाइस के संपर्क स्थापित करने में किया जाता है उदाहरण के तौर पर आपके कम्प्यूटर से किसी डिजीटल कैमरे या प्रिंटर को जोड़कर कार्य करने के लिए हमें कम्प्यूटर पर डिजीटल कैमरे या प्रिंटर का संबंधित डिवाइस ड्राइवर प्रोग्राम लोड करना होगा। सामान्यत किसी भी डिवाइस जैसे नेटवर्क कार्ड, साउन्ड कार्ड, वीडियो मॉनीटर, मॉडम, सीडी डिस्क राइटर, स्कैनर इत्यादि को कम्प्यूटर के साथ प्रयुक्त करने के लिए संबंधित डिवाइस ड्राइवर प्रोग्राम लोड करना होगा।
- यूटिलिटी प्रोग्राम (Utility Programs) – ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम जो कम्पयूटर हार्डवेयर, ऑपरेटिंग सिस्टम या अनुप्रयोग प्रोग्रामों से जुड़ी किसी एक विशिष्ठ कार्य करने के लिए निर्मित किए जाते है यूटिलिटी प्रोग्राम कहलाते है। सामान्यत इन प्रोग्रामों का उपयोग इन हार्डवेयर,ऑपरेटिंग सिस्टम या अनुप्रयोग प्रोग्रामों की किसी विशिष्ठ सेवा का लाभ लेना होता है जो किसी अन्य तरीके से उपलब्ध नहीं होता है । सामान्यत प्रयोग मे लाए जाने वाले प्रोग्राम जैसे डिस्क स्टोरेज यूटिलिटी, डिस्क पार्टीशनर, डिस्क क्लीनर, रजिस्ट्री क्लीनर, डिस्क डिफ्रागमेन्टर्स, डिस्क चैकर्स, बैकअप यूटिलिटी, डिस्क कम्प्रेशन यूटिलिटी, फाइल मैनेजर्स, टैक्ट तथा हैक्स एडीटर, क्रिप्टोग्राफिक यूटिलिटी, डाटा कम्प्रेशन यूटिलिटी आदि इस प्रकार के सॉफ्टवेयर के उदाहरण है।
- सर्वर्स (Servers) – सर्वर एक ऐसा सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर का समायोजन होता है जो उससे जुड़े अन्य कम्प्यूटरों को कोई विशिष्ठ सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे – नेटवर्क से अन्य कम्प्यूटरों को डाटावेस सेवा उपलब्ध कराने के लिए डाटाबेस सर्वर, वेबसाइट रखने तथा उन्हे अन्य कम्प्यूटरों पर प्रदर्शित करने की सुविधा हेतु वेब सर्वर, नेटवर्क से अन्य कम्प्यूटरों के बीच ई- मेल सेवा उपलब्ध कराने के लिए मेल सर्वर इत्यादि । कुछ अन्य प्रचलित सर्वर है एफ.टी.पी.सर्वर, त्वरित संदेश सर्वर, आडियो तथा वीडियो सर्वर, ऑनलाइन गेमिंग सर्वर, वॉयस कम्यूनिकेशन सर्वर, डोमेन नेम सर्वर इत्यादि ।
- लिंकर (Linkers) – इस प्रकार के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का उपयोग किसी कम्प्यूटर प्रोग्राम के कई मॉड्यूल तथा हिस्सो के ऑब्जेक्ट कोड (कम्पाइलर द्वारा जनित) तथा संबंधित कम्प्यूटर भाषा की लाइब्रेरी को जोड़कर एक अकेली संचालन योग्य फाइल को बनाने में किया जाता है ताकि उसे स्वतंत्र रुप से किसी भी कम्प्यूटर पर चलाया जा सके। सामान्यत लिंकर प्रोग्राम प्रत्येक कम्प्यूटर भाषा का एक महत्वपूर्ण भाग होते है।
- डिबगर (Debuggers) – इस तरह के कम्प्यूटर प्रोग्राम जो किन्ही दूसरे कम्प्यूटर प्रोग्रामों में आयी त्रुटि को पहचानने तथा उन्हें दूर करने में सहायक होते है, डिबगर कहलाते है। इस प्रकार के सॉफ्टवेयर के मुख्य उदाहरण है टर्बो डिबगर, एम. एस. डॉस का डिबग, जी. एन. यू. डिबगर, इकलिप्स, व्ही. बी. वॉच डिबगर आदि ।
- पाठ्य संसाधक (Text Editors) – इस प्रकार के कम्प्यूटर प्रोग्रामों का उपयोग सामान्य पाठ्य फाइलों के निर्माण में होता है। इनका प्रयोग कर कम्प्यूटर भाषाओं में प्रोग्राम लिखे जाते है तथा इन प्रोग्रामों के लिए कॉनफिगरेशन फाइल इत्यादि बनाने में किया जाता है। इन प्रोग्रामों से सिर्फ सामान्य पाठ्य फाइलें ही बनाई जा सकती है इनमें किसी तरह की कोई पाठ्य फार्मेटिंग जैसे बोल्ड, इटेलिक, अन्डरलाइन इत्यादि नहीं की जा सकती। उदाहरण के तौर पर एम. एस. डॉस का एडिट, विन्डोज का नोटपैड आदि।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार
ऑपरेटिंग सिस्टम के कई प्रकार के होते है तथा इनको कई तरह के वर्गों में विभाजित किया गया हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोग्रामों को यूजर इंटरफेस के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। कैरेक्टर यूजर इंटरफेस तथा ग्राफिकल यूजर इंटरफेस ।
- कैरेक्टर यूजर इंटरफेस (Character User Interface) – ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम कार्य करने के लिए उपयोगकर्ता से कम्प्यूटर स्क्रीन से निर्देश लिखित शब्दों के रूप में ग्रहण करते है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम पर कार्य करने के लिए आपको निर्देश को याद रखना आवश्यक है तथा उसे कीबोर्ड से टाइप करना होता है एक बार निर्देश देने पर कम्प्यूटर उस कार्य को संपन्न करता है तथा एक बार अगले निर्देश की प्रतीक्षा करता है. सामान्यत इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम पर एक समय में एक इस प्रकार है निर्देश ही दिया जा सकता है। डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का एक मुख्य उदाहरण है।
- ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (Grapical User Interface) – ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर को कार्य करने के लिए कम्प्यूटर स्क्रीन पर ग्राफिकल इंटरफेस प्रदान करते हैं। अर्थात ये यूजर को निर्देश प्रदान करने के लिए स्क्रीन पर निर्देश विकल्प / संदेश प्रस्तुत करते हुए उनमें से चयन की सुविधा स्क्रीन पर प्रदान करते हैं। निर्देश / विकल्पों का चयन करने के लिए माउस जॉयस्टिक या अन्य पाइंटिंग डिवाइस का प्रयोग किया जाता है। सामान्यत माउस के क्लिक डबल क्लिक से निर्देश का चयन किया जाता है । माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज के सभी संस्करण तथा एप्पल मैकिन्टोश इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य उदाहरण है।
ऑपरेटिंग सिस्टम को भी उपयोगकर्ता के कार्य करने के आधार पर दो प्रकारों में विभाजित किया गया है – सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम तथा मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम ।
- सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating Systems) – इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम एक ही समय में एक उपयोगकर्ता को उपयोग करने की सुविधा प्रदान करते है। डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम या डॉस इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य उदाहरण है।
- मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating Systems) – इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम एक ही समय में एक से अधिक उपयोगकर्ता को उपयोग करने की सुविधा प्रदान से अधिक उप करते है। माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज एनटी।, नॉवेल नेटवेयर, यूनिक्स तथा लिनक्स इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य उदाहरण है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम सामान्यत किसी कंप्यूटर नेटवर्क में प्रयोग किए जाते हैं। प्रोसेसिंग करने की क्षमता के आधार पर भी ऑपरेटिंग सिस्टम को दो प्रकार से विभाजित किया गया है – सिंगल टास्किंग तथा मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम।
- सिंगल टास्किंग (Single Tasking) ऑपरेटिंग सिस्टम – इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम एक समय में एक ही कार्य करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में यूजर कंप्यूटर को दूसरा निर्देश तब तक नहीं दे सकता जब जक कि पहले निर्देश का कार्य पूर्ण नहीं हो जाता है। डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम या डॉस इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य उदाहरण है।
- मल्टी टास्किंग (Multi Tasking) ऑपरेटिंग सिस्टम – इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम एक बार में एक से अधिक कार्य करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में कंप्यूटर को निर्देश पहले निर्देश का कार्य पूर्ण नहीं हुए बिना भी दिया जा सकता है जैसे एक ही समय पर उपयोगकर्ता प्रिंट करते हुए दूसरे प्रोग्राम को चलाने का निर्देश प्रदान कर सकता हैं साथ ही गाना कता है। माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज के सभी संस्करण, एप्पल मैकिन्टोश, यूनिक्स तथा लिनक्स इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य उदाहरण है।
ये भी जरुर पढ़े –
- 2023 में भारतीय राज्यो के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम
- Egurukul Notes 3.0 PDF Free Download
- B.A. 3rd Year समाजशास्त्र पहले और दूसरे पेपर के महत्वपूर्ण प्रश्न
- B.A. 3rd Year हिन्दी भाषा और नैतिक मूल्य के महत्वपूर्ण प्रश्न
- Ba Bcom Bsc 3rd Year English Language के महत्वपूर्ण प्रश्न
- CPCT के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न,उत्तर के साथ
- Mangal Font क्या है ,Mangal Unicode Hindi Font Download
- MS ACCESS में किसी Table में Data Entry करने का तरीका
- MS Excel Kya Hai आसान भाषा में जानिये
- Quick Recap कंम्प्यूटर दक्षता
- Windows 8.1 और उसकी विशेषताए ।
Join Whatsapp Channel | Click Here |
CB Home Page | ChandlaBoard |