जीआई टैग (GI Tag) या भारतीय मूल्यांकन चिह्न भारत में उत्पादों के गुणवत्ता और मानकों का प्रमाणित करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली मान्यता देने वाली संस्था भारतीय मानक विभाग (BIS) द्वारा प्रदान किया जाता है।
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GI tag –
जीआई टैग उत्पाद की गुणवत्ता, मानकों और देश के क्षेत्र के आधार पर दिया जाता है। इसे उत्पादों की विशिष्टता के आधार पर भी दिया जा सकता है, जिससे उत्पादों की पहचान और विपणन में मदद मिलती है। जीआई टैग उत्पादों के गुणवत्ता को बढ़ावा देता है और उत्पादकों को उत्पादों की पहचान करने में मदद करता है।
दूसरी भाषा में , जियोग्राफिकल इंडिकेशन या जीआई एक स्थानीय उत्पाद की पहचान करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक मान्यता है जो उत्पाद की मूल जगह को दर्शाती है। इसे विशिष्ट एक भूभाग से उत्पन्न होने वाले एक उत्पाद की विशेषताओं, गुणों, या जड़ों की संरचना के आधार पर पहचाना जाता है। जीआई उत्पादों की उच्च गुणवत्ता, समर्थन और उनकी संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए बनायी गई हैं।
GI tag क्यों जरूरी है –
GI (Geographical Indication) tag उत्पादों के गुणवत्ता, प्रसिद्धि और खासता को दर्शाता है। यह उत्पादों के गठन क्षेत्र या संसाधनों के मूल्य से जुड़ा हुआ होता है। GI टैग के माध्यम से उत्पादों की विशिष्टता का पता लगाया जा सकता है जिससे वे अन्य उत्पादों से अलग और पहचानी जा सकती हैं।
GI TAG के द्वारा उत्पाद के वर्गीकरण एवं उसकी मानकीकृत गुणवत्ता के लिए एक मानक प्राप्त होता है, जिससे उत्पादकों को उत्पाद की उच्च गुणवत्ता बनाये रखने के लिए संकेत मिलता है। इससे अधिकतर उत्पादकों की आय भी बढ़ती है क्योंकि वे उन्नत बाजार दुनिया में बेच सकते हैं।
इसके अलावा,GI TAG उत्पादों को चोरी या नकली से बचाने में भी मददगार होता है। यह उत्पादकों को उनकी उत्पादों को अनुमति के बिना नकल करने वालों से बचाता है।
इसलिए, GI टैग एक उत्पाद को एक विशिष्ट स्थान या क्षेत्र से जोड़ने के लिए जरूरी है।
GI tag की शुरुआत –
GI TAG की शुरुआत 1980 में हुई थी। यह टैग रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों की समय सारणी और अन्य जानकारी को दर्शाने के लिए उपयोग में लाया गया था। GI TAG समय सारणी, ट्रेन क्रमांक, स्टेशन का नाम और दूरी, विशेष रूप से दूरी की मात्रा को दर्शाता है। इसे टिकटों पर भी छपा जाता है ताकि यात्रियों को ट्रेन की जानकारी प्रदान की जा सके।
भारत में GI TAG –
भारत में अभी तक कुल 368 ज्ञानवर्धक संपदा अनुसंधान और विकास संगठन (GI) दर्ज हैं। ये विभिन्न उत्पादों, जैसे बांगला खाद्य सम्पदा, बनारसी साड़ी, दर्जिलिंग चाय, नागपुर अंबिया और मलबार बेतेलनगर कॉफ़ी जैसे खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों के नामों को संरक्षित करते हैं।
GI tag कैसे मिलता है –
भारत में ज्ञानवर्धक संपदा अनुसंधान और विकास संगठन (GI) का जिक्र करते हुए, GI TAG को संरक्षित करने के लिए एक विशेष कानून बनाया गया है जिसका नाम ज्ञानवर्धक संपदा विधेयक, 1999 है।
GI TAG प्राप्त करने के लिए, उत्पादकों को अपने उत्पाद को संरक्षित करने के लिए आवेदन करना होता है। उत्पादकों को अपने उत्पाद के GI TAG के लिए आवेदन करने से पहले उनको अपने उत्पाद के लिए एक संस्था बनानी होती है जो उत्पाद के नाम के साथ संबंधित होती है। संस्था को अपने उत्पाद के संरक्षण और प्रचार के लिए जिम्मेदार बनाया जाता है।
एक बार जब आवेदन प्रक्रिया पूरी होती है, तो ज्ञानवर्धक संपदा विभाग आवेदक के उत्पाद के विवरणों का जांच करता है और उत्पाद के विशेषताओं को विशेष रूप से जांचता है। इसके बाद, उत्पाद को संरक्षित करने के लिए GI TAG दिया जाता है।
GI TAG कितने वर्षों तक मान्य रहता है –
GI TAG एक विशेष प्रकार का चिह्न होता है जो किसी विशिष्ट उत्पाद की विशेषताओं और मूल्यों को सुरक्षित करता है और उसे उस क्षेत्र या क्षेत्रों से जोड़ता है जहां वह उत्पाद उत्पन्न होता है।
GI TAG की मान्यता की अवधि कुछ अलग-अलग देशों में भिन्न होती है। भारत में, जब एक उत्पाद को GI TAG दिया जाता है, तो उसे लागू होने वाले संबंधित नियमों के अनुसार 10 से 15 वर्षों तक मान्यता प्राप्त होती है।
इसके बाद, उत्पाद की GI TAG समीक्षा की जाती है और उत्पाद के बारे में कुछ बदलाव होने पर मान्यता को फिर से नवीनीकृत किया जा सकता है।
FAQ
जियोग्राफिकल इंडिकेशन एक विशेष प्रकार का ट्रेडमार्क होता है जो किसी विशेष भूगोलीय क्षेत्र से प्राप्त उत्पाद को दर्शाता है। इसके द्वारा उत्पाद की गुणवत्ता, उत्पादन और प्रक्रिया, लोकल रीति आदि का प्रमाण दिया जाता है।
भारत में जियोग्राफिकल इंडिकेशन के लिए प्रमाण पत्र भारतीय जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) रजिस्ट्री द्वारा जारी किया जाता है।
भारत में कई उत्पाद जैसे कि बनारस की साड़ी, नागपुर की सनकी, आगरा का पेठा, बंगलोर का अल्फांसो आम, दार्जिलिंग चाय आदि को जीआई संरक्षण मिला है।
जीआई से उत्पाद को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने में मदद मिलती है, जिससे उत्पादकों को उनके उत्पाद के मूल्य में वृद्धि होती है ।